अंतरराष्ट्रीय अदालत के चुनाव को जीतने के लिए उम्मीदवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद, दोनों में बहुमत हासिल करने की ज़रूरत होती है.
जस्टिस भंडारी के पास 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्यों में से करीब दो तिहाई का समर्थन हासिल था. क्रिस्टोफर ग्रीनवुड, जो आईसीजे में एक कार्यकाल पूरा कर चुके हैं, महासभा में 50 से अधिक वोटों से पीछे चल रहे थे. हालांकि सुरक्षा परिषद में भंडारी के पांच वोटों के मुकाबले ग्रीनवुड नौ वोटों से आगे चल रहे थे.
इसी साल के शुरुआत में भारत ने 70 वर्षीय जस्टिस भंडारी को एक और कार्यकाल के लिए दोबारा नियुक्त किया. वो पहली बार अप्रैल 2012 में नियुक्त किए गए थे. उस वक्त 193 सदस्यों वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा में उन्हें 122 वोट मिले थे. जबकि फिलिपींस के उम्मीदवार को महज़ 58 वोट ही मिल पाए थे. जबकि 15 सदस्यों वाले सुरक्षा परिषद में उन्हें पूर्ण बहुमत हासिल हुआ था.
उनका मौजूदा कार्यकाल फरवरी 2018 में समाप्त होगा और अब वो अगले नौ सालों के लिए दोबारा नियुक्त किए गए हैं.
आईसीजे में अपने कार्यकाल के दौरान भंडारी ने 11 मामलों में अपना व्यक्तिगत निर्णय दिया. जिसमें समुद्री विवाद, अंटार्कटिका में व्हेल पकड़ने, नरसंहार के अपराध, परमाणु निरस्त्रीकरण, आतंकवाद के वित्तपोषण और सार्वभौमिक अधिकारों का उल्लंघन शामिल हैं.
आईसीजे से जुड़ने के पहले भंडारी भारत की अदालतों में 20 सालों तक जज रहे हैं. वो सुप्रीम कोर्ट में भी वरिष्ठ जज के तौर पर अपनी सेवा दे चुके हैं.
आईसीजे में 15 जज होते हैं जिन्हें नौ सालों के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद नियुक्त करता है. किसी भी उम्मीदवार को इसके लिए दोनों संस्थानों में बहुमत हासिल करना ज़रूरी है.
आईसीजे के वेबसाइट के मुताबिक, जजों की नियुक्ति उच्च नैतिक चरित्र, योग्यता या अंतराराष्ट्रीय कानून में क्षमता की पहचान रखने वाले वकील की ही हो सकती है. जजों की नियुक्ति उनकी राष्ट्रीयता नहीं बल्कि योग्यता के बल पर की जाती है, लेकिन दो जज एक ही देश से नहीं हो सकते हैं.
1945 में स्थापित आईसीजे दुनियाभर के देशों के बीच कानूनी विवादों को सुलझाता है और कानूनी सवालों पर संयुक्त राष्ट्र के दूसरे संगठनों के नियमों के मुताबिक सलाह देता है. अंतराष्ट्रीय अदालत सभी के लिए खुला है, जिसमें सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश शामिल हैं.
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